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Friday, June 5, 2020

धनारी पट्टी के दिग्थोल गावं में नहीं है मंदिर ग्रामीण पेड़ की करते है पूजा ,ग्रामीणों ने गावं में स्थिति प्रचीन पेड़ को दिया माता का दर्जा

उत्तरकाशी घनारी पट्टी के  दिग्थोल गांव में कोई भी मंदिर नहीं है  दिग्थोल गांव के लोग  गावं में प्रचीन समय से  गावं में स्थित पेड़ की पूजा करते है और और इस पेड़ को ही भगवान मानते है अमूमन उत्तराखंड के प्रत्येक गावं में किसी न किसी देवी देवताओं का  मंदिर देखने को मिलता है लेकिन धनारी के दिग्थोल गांव में  मंदिर नहीं है और ग्रमीण पेड़ को ही मंदिर मानते है और इस पेड़ की पूजा अर्चना करते है -देखे एक रिपोर्ट

  यह गांव उत्तरकाशी से 28 किमी की दूरी पर स्थित है । चारों ओर सुंदर हरे भरे पेड़ और गांव के आगे बहती धनपति नदी इस गांव की सुंदरता पर चार चांद लगा देती है । ये गांव अन्य गांव से इसलिए अलग है क्योंकि इसकी अपनी एक अलग पहचान है । इस गांव में एक सिल्की का पेड़ है जिसे ग्रामीणों ने माता का दर्जा दिया है । दुनिया मे हर कोई अपनी मन्नते मांगने के लिए मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में जाते है लेकिन यहाँ के ग्रामीण अपनी मन्नते इसी पेड़ की पूजा करके मांगते है । यह राज्य का एकमात्र गांव है जहाँ पर एक भी मंदिर नहीं है । लेकिन ग्रामीणों के लिए यही पेड़ उनका भगवान है । इसी की पूजा करके वो अपनी सुख समृद्धि की कामना करते है । इसका एक कारण यह भी है कि यहाँ के ग्रामीण दुनिया को ये संदेश देना चाहते है कि दुनिया मे सबसे बड़ा भगवान हमारे पेड़ पौधे है । जिनकी वजह से हम इस पृथ्वी पर जीवित है । इसीलिए वो इस पेड़ के संरक्षण के लिए इसकी खूब देख रेख भी करते है ।  इस पेड़ की भी अपनी एक अलग विशेषता है । यह पेड़ पूरे 12 महीने हरा-भरा रहता है । साल में 2 बार फूल खिलते है । फूल खिलने के समय पूरा गांव समेत आसपास के 4-5 किमी के दायरे में आने वाले गांव सुगंधमय हो जाते है । इस पर फूल तो खिलते है पर कोई फल नही लगता है । ऐसा माना जाता है कि इस दुर्लभ प्रजाति का पेड़ इस क्षेत्र में ओर कहीं नही देखा जाता है ।

  गांव के वरिष्ठ लोगों का कहना है कि इस पेड़ को स्थापित करने को लेकर कोई कुछ  नही जानता  । उनका कहना है कि जब से उनका जन्म हुआ है तब से ये पेड़ इसी अवस्था मे है ।  इस पेड़ को उद्दालक के पुत्र नचिकेता ने यहां स्थापित किया ऐसी मान्यता है  ऐसा इसलिए प्रतीत होता है कि इसी गांव के ऊपर नचिकेता ताल भी है जहाँ पर नचिकेता ने तपस्या की थी । लेकिन कोई कुछ भी कहे पेड़ के प्रति ग्रामीणों के इस प्रकार की सच्ची श्रद्धा वास्तव में एक सराहनीय पहल है । इसीलिए तो आज भी इस गांव में अनेक पानी के प्राकृतिक श्रोत ओर बांज- बुरांश के घने जंगल देखने को मिलेंगे । ऐसे सुंदर गांव और प्राकृतिक धरोहरों के संवर्धन में अपना योगदान जरूर दे ।
रिपोर्ट-हेमकान्त नौटियाल

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