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Wednesday, March 3, 2021

उत्तरकाशी-ऐसे होते पहाड़ों में अन्न भंडारण(कुठार),लेकिन आज पहाड़ी अन्न गोदाम विलुप्ति की कगार पर,आज इनके संरक्षण और संवर्धन की आवश्यकता

 उत्तरकाशी-ऐसे होते पहाड़ों में अन्न भंडारण(कुठार),लेकिन आज पहाड़ी अन्न गोदाम विलुप्ति की कगार पर,आज इनके  संरक्षण और संवर्धन की आवश्यकता





उत्तरकाशी।।।अन्न भंडारण  (कुठार ) अगर साधारण भाषा मे कहें तो अनाज के पहाड़ी गोदाम  जिसमें पहाड़ के लोग शदियों से अपनी उपज अनाज को रखते आये हैं। जिसमें  धान, गेंहू, कोदा, झंगोरा, मंडुवा, चौलाई, दालें, घी ,तेल,  रोजमर्रा की खाद्य सामग्री की हर वस्तु रखी जाती हैं और यहां तक  गहने ,नगदी यानी आभूषण भी लोग रखते है 


लोकेंद्र सिंह बिष्ट भाजपा नेता बताते है कि मैं अभी हाल ही  मैं अपने मामाकोट यमुनाघाटी के नगाणगांव में गया। वहां आज भी एक से बढ़कर एक कुठार सही सलामत मौजूद हैं। अमूमन पहाड़ों में एक कुठार (एक स्ट्रक्चर) में एक या दो कुठार ही होते हैं। लेकिन यहां पर एक ही कुठार में (एक ही स्ट्रक्चर में )तीन तीन कुठारों का अदभुत निर्माण किया हुआ है जो आज भी मौजूद हैं। गजब की अदभुत अनूठी तकनीकी के साथ लकड़ियों पर नकाशीदार कलाकारी उकेरी हुई।



     साथ ही लेकेन्द्र सिंह बिष्ट कहते है कि   मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि आज भी दुनियाभर के उम्दा इंजीनियरिंग कॉलेजों से पढ़ाई कर निकले बड़े से बड़े इंजीनियर (आर्किटेक्ट) पहाड़ों में बने इस तरह के कुठार व  पंचपुरे भवनों के निर्माण की कल्पना नहीं कर सकते जो आज से शदियों पूर्व हमारे बुजुर्गों, कारीगरों ,मिस्त्रियों ने बिना शिक्षा दीक्षा व बिना स्कूली ज्ञान के इस तरह के अदभुत, अकल्पनीय, दुर्लभ अविश्वसनीय पंचपुरे व कुठारों का निर्माण उस सदी में कर दिया।              आपको बताते चलें कि इन कुठारों के निर्माण में   पूरी तरह से सौ फीसदी लकड़ियों का ही इस्तेमाल होता है वो भी देवदार की लकड़ी का। जिसके चलते इन देवदार की लकड़ी से बने कुठार में भंडारण किये अनाज की खराब होने की संभावना न के बराबर होती है।ये कुठार  कोल्डस्टोरेज का भी काम करते हैं।

 

कुठार जो कि मुख्यतः देवदार की लकड़ी के ही बने होते हैं और ये कुठार भंडारण के साथ हमारी पहाड़ी संस्कृति और कला व कलाकारी के अभिन्न अंग भी हैं। ये दिखने में जितने अदभुत व आकर्षक होते हैं उतने ही अकल्पनीय व अविश्वसनीय भी।  आज भी खेती बाड़ी से पैदा हुए अन्नपाणी  जैसे धान, गेहूं,कोदा, झंगोरा, कौणी, चिणा, जौ पहाड़ी दालें जैसे कि राजमा, उड़द, तोर, गहथ आदि सभी फसलों व खाने पीने की बस्तुओं को रखने व भंडारण की एकमात्र जगह कुठार ही हुवा करते हैं। कुठार समृद्धि का भी प्रतीक होते हैं।



सामान्यतः कुठार घरों के सामने ही बने होते हैं बीच मे खलियान (खल्याण) ताकि इस पर नजर बनी रहे। कुठार से लेकर आवासीय भवन मकान तक एक लोहे की जंजीर लगी होती है और जंजीर पर लटके (घंटियां) घण्डोले, और जंजीर का एक सिर कुठार के दरवाजे से बंधी व दूसरा मकान से। कुठार के मुख्य दरवाजे पर किसी तरह छेड़छाड़ से जंजीर के हिलने से घंटियां बज उठती औऱ मालिक चौकन्ना और चोर भाग खड़ा। ये सब व्यवस्था आज भी मौजूद हैं। भंडारण की प्रयाप्त क्षमता के साथ हर अन्न के लिए अलग अलग खाने (गाँजे) बने होते हैं।समूचे पहाड़ खासकर समूचे उत्तरकाशी और रवांई-जौनपुर में स्थानीय कला के ये बेजोड़ नमूने हैं इसके आगे के हिस्सों पर नक्काशी दार विभिन्न आकृतियां बनी हुई होती है जो कुठार की  सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं।




कुठार का दरवाजा छोटा-सा होता है लेकिन इसकी सुरक्षा के उपाय भी नायाब व अदभुत होते हैं। इसके दरवाजों पर अंदर की तरफ से ताला एक विशेष तकनीकी से लगाया जाता है जिसकी चाभी भी लोहे की होती है करीब तीन फीट लंबी। ये चाभी किसी को मिल भी जाय तो अंदर की तरफ से लगे ताले को खोलना सबके बूते की बात नहीं।बाहर से तो ताला लगा ही होता है। जंजीर अलग से बंधी होती है। यानी सुरक्षा के तीन तीन घेरे होते हैं कुठार के। इसमें   भंडारण का जो तरीका हमारे बुजुर्गों ने ईजाद किया है वो आज के बड़े से बड़े इंजीनियर भी नहीं कर पाए हैं। वहीं लोकेंद्र सिंह बिष्ट बताते है कि , अपने घर गांव में ये कुठार बातचीत करने के केंद्रबिंदु होते हैं। इन्ही कुठारों के पास लोग बैठकर गपशप करते हैं। लेकिन आज कुछ ग्रमीण क्षेत्रों को छोड़कर यह सदियों पुरानी हमारी कलाकृति ये अन्न भंडारण विलुप्ति की कगार पर ,जिसको संवर्धन और संरक्षण करने की अति आवश्यकता है 

आज अदभुत, नायाब,बेमिसाल, अकल्पनीय, अविश्वसनीय तकनीकी से निर्मित इन दुर्लभतम कुठारों के संरक्षण की अति आवश्यकता है।


रिपोर्ट-हेमकान्त नौटियाल

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